विमल कुमार
इस उम्र में माधव बाबू दौड़ते-दौड़ते हाफ़ने लगे थे।
वे अपने साथियों से पीछे-बहुत पीछे छूट गये थे। इतना पीछे कि मुड़कर उन्हें देखा नहीं जा सकता था। वे सब ओझल हो गये थे। बस उनकी स्मृतियाँ ही बची थीं।
हाफ़ने के बाद वे चुपचाप पुलिया पर बैठ गये। नहीं, अब नहीं, इस उम्र में वह दौड़ नहीं सकते। यह भी कोई दौड़ने की उम्र है। इसीलिए वह इस दौड़ में कभी शामिल नहीं रहे। उन्होंने जिन्दगी में कभी कोई दौड़ नहीं लगायी। वे तो चुपचाप चलते रहे। धीमी गति से।
पुलिया पर बैठे वह उगते सूरज को देखने लगे। आसमान पर लाल बिन्दी-सा। उसे देखते ही उन्हें अपनी पत्नी याद आ गयी। वह जब ब्याह कर लाये थे, तो उसके माथे पर भी लाल बिन्दी हुआ करती थी, पर वह धीरे-धीरे गायब हो गयी। वक्त के थपेड़ों के साथ।
माधव बाबू न जाने क्या-क्या सोचने लगे। नहीं, वह तो पूरी तरह तन्दुरुस्त हैं, चंगे हैं, तो फिर वह हाफ़ने क्यों लगे। थोड़ी ही देर दौड़े कि थक गये। पांव जवाब देने लगे।
कहीं वह डायबिटीज के मरीज तो नहीं हो गये? क्या वे दिल के मरीज तो नहीं हो गये?
अभी तो माधव बाबू रिटायर हुए हैं। लेकिन कुछ सालों से उन्हें लगने लगा है कि जिन्दगी की रफ्तार कुछ ज्यादा तेज हो गयी है। इतनी तेज रफ्तार में वह दौड़ नहीं सकते। वह तो चलते हुए भी लड़खड़ाने लगते हैं। कल ही वह टी.वी. पर न्यूज सुन रहे थे - फ्रांस में विमान की गति से भी तेज चलने वाली ट्रेन बनी है। अपने देश में भी बुलेट ट्रेन चलने की चर्चा होने लगी है।
इतनी तेज रफ्तार! लेकिन यह रफ्तार केवल गाडि़यों, मोटरों या प्लेनों और ट्रेनों तक सीमित नहीं थी। उन्हें लगता था कि आजकल घड़ी की सूयिआं भी तेज हो गयी हैं। घड़ी में यू तो अभी भी चौबीस घण्टे होते हैं, पर लगता है कि सूयिआं पहले से तेज चलने लगी हैं। सुबह-शाम बीतते या रात ढलते पता ही नहीं चलता। यहा तक कि गर्मी, बरसात और जाड़ा भी तेजी से गायब होने लगे। साल भी तेजी से बदलने लगा।
देखते-देखते उनके बच्चे नौकरी करने लगे, प्राइवेट नौकरी ही सही, लड़किया भी ब्याह गयीं, दामाद भले ही कॉल सेण्टर में काम करते हों।
माधव बाबू की दाढ़ी पक गयी। चेहरे पर झुर्रियां लटकने लगीं, पर यह तो सबके साथ होता है। सबका जीवन इसी तरह बीतता है। हर युग में समय इसी तरह बदलता है, पर क्या वाकई अब समय पहले की तुलना में तेजी से बदल रहा है।
दिल्ली आकर तो माधव बाबू को यही लगता था, पर जब वे अपने गा¡व जाते थे, तो लगता था कि समय अभी ठहरा हुआ है। सब कुछ धीमा और सुस्त। लोग चेहरे लटकाये हैं।
माधव बाबू पुलिया पर से उठे और अपने मकान की तरफ चलने लगे। कल बजट का दिन है। बेटा एक निजी चैनल में काम करता है। वह बता रहा था कि इस बार बजट में काफी कुछ घोषणाए¡ होने वाली हैं। उन्होंने अखबार में पढ़ा था। टी.वी. पर भी यही बताया जा रहा था। माधव बाबू का बेटा राहुल बता रहा था- `पापा, कल बजट में किसानों के कर्ज की माफी की घोषणा होगी। बहुत इम्पोüटेण्ट डे है इçण्डयन पोलिटिक्स की हिस्ट्री में। कल तो मैं सुबह ही निकल जाऊगा। एक-एक की बाइट, अपोजीशन लीडर की भी बाइट लेनी है।´
माधव बाबू खुश भी थे कि उनका बेटा टी.वी. पर आने लगा है। घर-रिश्तेदारों में उनकी थोड़ी इज्ज़त बढ़ गयी थी। खानदान के जो लोग उनकी परवाह नहीं करते थे, अब वे भी माधव बाबू से राहुल का हाल जरूर पूछते। वे कहते- `जरा राहुल से कहकर आप भी कभी हमें पार्लियामेन्ट दिखा दें। जरा हम भी लालू, सोनिया और वाजपेयी जी को लोकसभा में बोलते देखना चाहते हैं।´
माधव बाबू बाहर से खुश जरूर थे, पर अन्दर से नहीं। राहुल सुबह नौ बजे निकलता तो रात ग्यारह बजे घर लौटता था। छुट्टी के दिन भी फोन आ जाता तो उसे दफ्तर भागना पड़ता था। बहू भी कहीं काम करने लगी थी। वह शाम को जल्द लौट आती थी, पर दिन भर उनके बेटे की माधव बाबू और उनकी पत्नी देखभाल करते।
छुट्टी के दिन बेटे और बहू अपने कामकाज को निबटाने में लगे रहते थे। खाने की मे$ज पर मा¡-बाप अपने बेटों से मिलते थे। वहीं जो बात हो जाये तो हो जाये, अन्यथा पूरी बात भी नहीं हो पाती थी।
माधव बाबू सोचने लगे - क्या मुल्क की तस्वीर बदलेगी शास्त्री जी के जमाने से उन्हें याद है। जब वह स्कूल में पढ़ते थे तो जी.डी. देशमुख वित्तमंत्री हुआ करते थे। वह बजट पेश करते थे। तब से यही कहा जा रहा है कि मुल्क की तस्वीर बदल जायेगी। लेकिन वह तो यही देख रहे थे कि महगाई बढ़ती जा रही है। बेरोजगारी भी बढ़ती जा रही है। प्रधानमंत्री भी अब कहने लगे हैं कि गा¡व और शहरों में खाई बढ़ रही है, असमानता बढ़ रही है। दूसरी तरफ अपने देश में करोड़पति भी बढ़ रहे थे।
माधव बाबू अपने जीवन में अपनी कमाई से एक मकान भी नहीं बना पाये। लोग कहते हैं कि अब बैंक भी काफी लोन देने लगे हैं, पर माधव बाबू किस्त कैसे चुकाते। तीन-चार बच्चों की पढ़ाई। ऊपर से लड़कियों की शादी के लिए दहेज।
बड़ी मुश्किल से एक एल.आई.सी. करवाया था। कभी अपने इलाज में पैसे खर्च, तो कभी पत्नी के इलाज में, तो कभी माता-पिता के दवा-दारू में पैसे खर्च। कहा बचत करते, किस तरह करते। माधव बाबू अपने बेटे के पास आ तो $जरूर गये थे, पर यहा आकर वे काफी अकेला महसूस करने लगे थे। इससे अच्छा तो जमशेदपुर था, वहा¡ वह स्कूल में इतने दिन तक पढ़ाते रहे, पर वह वहा¡ रहते कैसे। अपना मकान तो था ही नहीं। अब तो बेटे के साथ उनका रहना उनकी मजबूरी भी थी।
अगले दिन माधव बाबू टी.वी. खोलकर बैठ गये बजट का लाइव टेलीकास्ट देखने। थोड़ी ही देर में वित्तमंत्री अपना बजट भाषण पढ़ने लगे, तभी बिजली चली गयी। घर में इनवर्टर जरूर था, पर टी.वी. से उसका कनेक्शन नहीं था। उन्होंने मुहल्ले में पड़ोसियों से पूछा, पर उनमें किसी के पास टी.वी. में इनवर्टर कनेक्शन नहीं था।
माधव बाबू की पत्नी ने कहा- `जरा राहुल को फोन कीजिए। वह वहीं से कुछ बतायेगा।´
माधव बाबू ने राहुल के मोबाइल पर फोन करने की कोशिश की, पर फोन नहीं लगा। वह थक-हारकर बैठ गये। कहीं दो बजे राहुल का फोन आया- `पापा, वित्तमंत्री ने किसानों के क$र्ज माफ कर दिये और हा इनकम टैक्स में भी काफी रिबेट दिया है। सीनियर सिटीजन को भी टैक्स रिबेट दिया है। ........´
तभी राहुल का फोन कट गया। माधव बाबू बेटे से पूछना भूल गये - मह¡गाई कम करने के बारे में कुछ घोषणाए¡ हैं!
माधव बाबू फिर उठे और टी.वी. खोलने लगे, पर बिजली नदारद। शाम तक बिजली नहीं आयी। वह शाम को सैर करने निकल पड़े। थोड़ी देर के लिए बिजली आयी, पर फिर चली गयी। आठ बजे लौटे तो देखा कि घर की बत्ती जल रही है, पर भीतर पहु¡चने पर मालूम हुआ कि इनवर्टर की लाइट जल रही है।
रात दस बजे तक बिजली नहीं आयी। माधव बाबू टी.वी. पर बजट की जानकारी नहीं ले सके। राहुल ने बीच-बीच में फोन कर उनकी पत्नी को कुछ जानकारिया जरूर दीं, पर उन्हें पूरी तरह समझ नहीं आयी, इसलिए वे अपने पति को नहीं बता सकीं। वह सिर्फ इतना ही बोली कि- `राहुल फोन पर क्या तो कह रहा था। मेरे तो पल्ले ही नहीं पड़ रहा था।´
`तुमने उससे नहीं पूछा- आटा, चावल, दाल के दाम कम हुए या नहीं?´
`ओ! यह तो मैं पूछना ही भूल गयी। वह तो इतना उत्साहित था कि मैं कुछ पूछ ही नहीं पायी।´
माधव बाबू खा-पीकर सो गये। सुबह उठे तो अभी अ$खबार नहीं आया था। वह टहलने निकल गये।
आज वह फिर दौड़ने की कोशिश करने लगे, पर दौड़ नहीं पाये। वह थोड़ी ही दूर दौड़े होंगे कि उन्हें लगा कि उनका पा¡व मुचक गया है। वह पुलिया पर बैठ गये। सामने कई शापिंग मॉल बन रहे थे। उधर, ऊची-ऊची अपार्टमेन्ट। सामने एन.एच.-24 हाइवे था। बायीं तरफ मैनेजमेन्ट कॉलेज, दायीं तरफ टेक्नॉलाजी पार्क। पीछे झुग्गियां ही झुग्गियां| सामने मैदान में गरीब मर्द-औरत शौच कर रहे थे।
मदर डेयरी की गाड़ी आ रही थी। स्कूल की बसें चलने लगी थीं। कई नौजवान लड़के और लड़किया¡ लम्बी-लम्बी गाडि़यों से उतरे और वे सड़क के किनारे पार्क में जागिंग करने लगे। उन्होंने गले में मोबाइल लटका रखा था और कानों में उसकी तार फसी हुई थी। वे शायद कोई म्यूजिक सुन रहे थे। उन लड़के एवं लड़कियों ने ट्रैक सूट पहन रखा था और रीबॉक के महगे जूते पहन रखे थे। वे आपस में अंग्रेजी में ही बात कर रहे थे। उनमें से कुछ पार्क में एक्सरसाइज करने लगे।
जब एक्सरसाइज खत्म हुआ तो उनमें से कुछ बच्चे माधव बाबू के पास आये। वे बोलने लगे- `अंकल, हम लोग मैनेजमेन्ट के स्टूडेण्ट्स हैं। रिटेल सेक्टर में एफ.डी. आई. पर अपनी रिपोर्ट तैयार कर रहे हैं। क्या आप बजट पर अपना रिएक्शन देंगे?´
माधव बाबू कल से ही चिढ़े हुए थे। वह बिजली गुल होने के कारण टी.वी. पर बजट देख नहीं पाये थे, लेकिन इन लड़कों को क्या कहते। हालाकि उन्हें बाद में पता चल गया था कि बजट में क्या-क्या घोषणाए¡ हुई हैं।
माधव बाबू ने सामने एक झोंपड़ी से निकलते आदमी की तरफ अगुली करके कहा- `बेटे! बेहतर है, तुम लोग उस आदमी से पूछो। वह जो बात कहेगा, वही इस मुल्क का सही रिएक्शन होगा।´
लड़के बोले- `अंकल! वह आदमी तो बजट समझता ही नहीं और फिर वह हमारा कंज्यूमर भी नहीं है। हमें तो आपसे ही रिएक्शन लेना है।´
माधव बाबू बोले- `बेटे! हमारा यही रिएक्शन है कि इस मुल्क का आदमी अभी-भी बजट पर अपना रिएक्शन देने की स्थिति में नहीं है, वह बजट को इसी रूप में समझता है कि उसके घर का बजट कितना गड़बड़ा गया है। तुम अपनी रिपोर्ट में यही लिख दो।´
लड़के माधव बाबू की बातें सुनकर खीझ गये। उन्होंने ेकहा- `अंकल! यह भी कोई बात हुई। अपना रिएक्शन देना नहीं चाहते, तो मत दीजिए। यह आपके जेनेरेशन की प्रॉब्लम है। ओ.के. - बाई।´
यह कहकर लड़के चले गये। तभी थोड़ी देर में अ$खबार वाला दिखा। सभी लड़के उसकी तरफ टूट पड़े और अ$खबार छीनने लगे।
अ$खबार वाला चिल्ला पड़ा- `अरे भाई! आपके घर पर अखबार फेंक दूगा। आप लोग यहा¡ क्यों ले रहे हैं? मेरा हिसाब गड़बड़ा जायेगा।´
तभी एक लड़के ने अ$खबार वाले को जबरदस्त घू¡सा मारा। अखबार वाला साइकिल लिए सड़क पर गिर गया। उसके मुह से खून निकल आया।
माधव बाबू अ$खबार वाले को पहचानते थे, क्योंकि वह उनके घर भी अ$खबार फेंकता था।
लड़के चिल्ला रहे थे- `साले, वास्टर्ड! एक तो अखबार देर से फेंकता है। जानता नहीं, आज बजट का अखबार है। हमारे लिए कितना इम्पोüटेण्ट है। ऊपर से बहस करता है। फाइनेन्स मिनिस्टर ने कितनी इम्पोर्टेंट एनाउण्समेन्ट की हैं। इनकम टैक्स में रिबेट, एक्सपोर्ट ड्यूटी कम की है। ग्रोथ रेट बढ़ गया है। तेरे जैसे गरीब लोगों की हालत सुधारने में मनमोहन सिंह लगे हैं। तुम लोगों को कभी कुछ समझ में नहीं आयेगा। कामचोर और निकम्मे ठहरे तुम सब। मुल्क में बैकवर्डनेस का यही कारण है।´
अखबार वाला हक्का-बक्का था। उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। माधव बाबू जब तक दौड़कर अखबार वाले के पास आते, तब तक लड़के अखबार की कई प्रतिया¡ झपटकर अपने-अपने घर की तरफ बढ़े।
माधव बाबू ने सोचा कि दौड़कर उनमें से एक को पकड़ लें। वे दौड़े भी, पर पता नहीं क्यों दौड़ नहीं पाये। उनकी नि$गाह लड़कों की टी-शर्ट पर गयी। उनकी पीठ पर लिखा था - बड़े-बड़े अक्षरों में - `रन फार इंडिया´ और बानüवीटा की तस्वीर छपी थी।
माधव बाबू ने जिन्दगी में आज तक `रन फार इंडिया´ में भाग नहीं लिया था। शायद यही कारण है कि वह उन लड़कों को दौड़कर पकड़ नहीं सके। आइकान, फोर्ड जैसी लम्बी गाडि़या फौरन स्टार्ट होकर हवा में गायब हो गयीं।
माधव बाबू अखबार वाले को उठाने लगे। सड़क पर बिखरे अखबारों में प्रधानमंत्री मुस्करा रहे थे। उनकी आ¡खों में एक रंगीन सपना था, जो माधव बाबू को बहुत डरावना लग रहा था। उन्होंने ऐसी आखें अपनी जिन्दगी में नहीं देखी थीं।
Tuesday, March 3, 2009
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